सभी प्राणियों के जीवन में वास्तु का बहुत महत्व होता है। तथा जाने व
अनजाने में वास्तु की उपयोगिता का प्रयोग भलीभांति करके अपने जीवन को सुगम
बनाने का प्रयास करते रहतें है। प्रकृति द्वारा सभी प्राणियों को
भिन्न-भिन्न रूपों में ऊर्जायें प्राप्त होती रहती है। इनमें कुछ
प्राणियों के जीवन चक्र के अनुकूल होती है तथा कुछ पर प्रतिकूल प्रभाव
डालती है। अतः सभी प्राणी इस बात का प्रयास करते रहते है कि अनुकूल ऊर्जाओं का अधिक से अधिक लाभ लें तथा प्रतिकूल ऊर्जा से बचें।
उदाहरण के लिये- सूर्य की ऊष्मा ग्रीष्म ऋतु में प्रतिकूल तथा शीत ऋतु में सुखद अनुभव देती है। जिसके कारण ग्रीष्म ऋतु में हम अधिक से अधिक सूर्य की ऊष्मा के सीधे प्रभाव से बचने का प्रयास करते रहते है। जबकि शीतकाल में उसी सीधी ऊष्मा को ग्रहण काने का प्रयास करते है। इसके लिये हम अपने निवास स्थान आदि में उसी के अनुरूप भवन निर्माण करते है। प्रकृति द्वारा उपलब्ध ऊर्जायें मुख्य रूप से दो प्रकार के प्रभाव डालती है। 1- सकारात्मक उर्जा, 2- नकारात्मक ऊर्जा । ये दोंनों प्रकार की ऊर्जायें हमें सुख व दुःख की अनुभूति कराती है।
कैसा हो आपका पूजन कक्ष-
1- पूजा गृह भवन में ईशान कोण (पूर्व-उत्तर) अथवा उसके समीप उत्तर या पूर्व दिशा में बनायें।
2- पूजा कक्ष शयन कक्ष अथवा रसोई घर में न बनायें।
3- पूजा गृह की दीवारों व फर्श का रंग हल्का सफेद, पीला या हल्का नीला होना चाहिये।
4- पूजन गृह में हवन कुण्ड आग्नेय कोण, (पूर्व-दक्षिण) में होना चाहिये।
5- पूजा करते समय मुख ईशान कोण, पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिये।
6- पूजा घर में युद्ध के चित्र या पशु-पक्षी के चित्र लगाना वास्तु के अनुसार उचित नहीं है।
7- पूजा गृह में कोई भी मूर्ति 4 इन्च से अधिक लम्बी न हो तथा मूर्तियां ठीक दरवाजे के सामने नहीं होनी चाहिये।
8- घर में झाड़ू व कूड़ेदान आदि भवन के ईशान कोण एंव पूजा गृह के निकट नहीं हेना चाहिये।
9- पूजा घर की सफाई हेतु झाड़ू व पोछा अलग होना चाहिये।
10- हनुमान जी की मूर्ति नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में स्थापित करें।